मातृभूमि के माला के मन के हैं हम स्नेह धागे में सब हैं पिरोए हुए जन्भूमि के उत्कर्ष हमें चाहिए स्वप्न बिंघ कर भी हम हैं सजोये हुए स्नेह धागा अगर जो विखंडित हुआ न जाने ये मनके किधर जायेंगे न धर्म ही रहे औ न जाति ही रहे शुष्क तिनके से सरे बिखर जायेंगे स्वस्थ कर्तव्य की भावना ना जगी मातृभूमि की ममता न आई हिये वर्ग भेदों से शत्रुता बढ़ाते रहें वैमनस्यता का जीवन फिर कैसे जियें काहें घर-घर में आयुध हैं दिखते बता आज भाई के शत्रु क्यों भाई बने स्वार्थ सबके दिलों में समां जो गया नेह के रस में कैसे रहें सब सने मातृभूमि के रक्षण की गर चाह है त्याग की भावना दिल में पनपाईये पोषित कुंठा को दिल से भगा दीजिये प्यार की ज्योति दिल में जला लीजिये – शम्भु मातृभूमि पर कविता हिंदी में [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मातृभूमि के माला के मन के हैं हम
मातृभूमि के माला के मन के हैं हम
स्नेह धागे में सब हैं पिरोए हुए
जन्भूमि के उत्कर्ष हमें चाहिए
स्वप्न बिंघ कर भी हम हैं सजोये हुए
स्नेह धागा अगर जो विखंडित हुआ
न जाने ये मनके किधर जायेंगे
न धर्म ही रहे औ न जाति ही रहे
शुष्क तिनके से सरे बिखर जायेंगे
स्वस्थ कर्तव्य की भावना ना जगी
मातृभूमि की ममता न आई हिये
वर्ग भेदों से शत्रुता बढ़ाते रहें
वैमनस्यता का जीवन फिर कैसे जियें
काहें घर-घर में आयुध हैं दिखते बता
आज भाई के शत्रु क्यों भाई बने
स्वार्थ सबके दिलों में समां जो गया
नेह के रस में कैसे रहें सब सने
मातृभूमि के रक्षण की गर चाह है
त्याग की भावना दिल में पनपाईये
पोषित कुंठा को दिल से भगा दीजिये
प्यार की ज्योति दिल में जला लीजिये
– शम्भु
मातृभूमि पर कविता हिंदी में
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