साँझ की वरसात के रिमझिम स्वरों का यह तराना,
नीड़ में दुबके खगों का प्रेम से कुछ गुनगुनाना |
सुघर सावन में वरसते मेघ की चादर पसारे,
स्नेह से भीगे नयन की कोर से विरहिन निहारे ||
मधुर बासन्ती छणों में गीत बनकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा ||
बिछ गयी मुसकान जैसे धान की बाली लहरती,
खिंच गयी भौंहे कि जैसे बीचि जलपर है थिरकती |
उधर पर मधुहास का संकेत मन को बाध लेता,
योग से जैसे कोई साधक प्रकृति को साध लेता ||
मुक्ति में विश्वास हो तो रीति बनकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा ||
सोचता हूँ क्या सितारों की तरह जगना पड़ेगा,
जिन्दगी भर क्या नदी के कूल सा कटना पड़ेगा |
स्वप्न के दुर्भिक्ष में सूखा अतल का कूप सहसा,
याद आता है कहाँ से फिर तुम्हारा रूप सहसा ||
खो चुका मधुगीत तो अब प्रीति बनकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा ||
श्वाँस के धनु पर थिरकते शब्द के तुम तीर बन लो,
या विरहिनी के वरसते नैन में तुम नीर बन लो |
मधु मिलन की धड़कनों के राग की तुम रागिनी हो,
स्वप्न के मादक पलों में चाँद की तुम चाँदिनी हो ||
मैं तुम्हारी जिन्दगी में
मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा |
साँझ की वरसात के रिमझिम स्वरों का यह तराना,
नीड़ में दुबके खगों का प्रेम से कुछ गुनगुनाना |
सुघर सावन में वरसते मेघ की चादर पसारे,
स्नेह से भीगे नयन की कोर से विरहिन निहारे ||
मधुर बासन्ती छणों में गीत बनकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा ||
बिछ गयी मुसकान जैसे धान की बाली लहरती,
खिंच गयी भौंहे कि जैसे बीचि जलपर है थिरकती |
उधर पर मधुहास का संकेत मन को बाध लेता,
योग से जैसे कोई साधक प्रकृति को साध लेता ||
मुक्ति में विश्वास हो तो रीति बनकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा ||
सोचता हूँ क्या सितारों की तरह जगना पड़ेगा,
जिन्दगी भर क्या नदी के कूल सा कटना पड़ेगा |
स्वप्न के दुर्भिक्ष में सूखा अतल का कूप सहसा,
याद आता है कहाँ से फिर तुम्हारा रूप सहसा ||
खो चुका मधुगीत तो अब प्रीति बनकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा ||
श्वाँस के धनु पर थिरकते शब्द के तुम तीर बन लो,
या विरहिनी के वरसते नैन में तुम नीर बन लो |
मधु मिलन की धड़कनों के राग की तुम रागिनी हो,
स्वप्न के मादक पलों में चाँद की तुम चाँदिनी हो ||
हारता आया सदा अब जीत लेकर क्या करूँगा |
मैं तुम्हारी जिन्दगी में गीत बनकर क्या करूँगा |
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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