मूंद कर आँख तुम भले रखना सोच के दायरे खुले रखना लाख टुकड़े हों घर आंगन के नैन से नैन पर मिले रखना लुत्फ चाहो अगर चे जीने में साँस के साथ मरहले रखना फैज क्या धूप में जलाने से इन चरागों को दिन ढले रखना लोग अहसास से परे हों तो होठ अपने वहाँ सिले रखना खुश्क पथराई हुई आँखो में ख़्वाब बरसात के पले रखना – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मूंद कर आँख तुम
मूंद कर आँख तुम भले रखना
सोच के दायरे खुले रखना
लाख टुकड़े हों घर आंगन के
नैन से नैन पर मिले रखना
लुत्फ चाहो अगर चे जीने में
साँस के साथ मरहले रखना
फैज क्या धूप में जलाने से
इन चरागों को दिन ढले रखना
लोग अहसास से परे हों तो
होठ अपने वहाँ सिले रखना
खुश्क पथराई हुई आँखो में
ख़्वाब बरसात के पले रखना
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें