नारी हित की बात करेंगे पर आवाज़ दबाएंगे, नैतिकता का पिंड दान कर अपना राज चलाएंगे। रूप सजा निकले जब घर से गणिका तुल्य बताते हैं, रहे सादगी में यदि औरत कौड़ी मूल्य लगाते हैं। नारी तन को देख वासना रोम रोम में धधक उठे, जब विरोध वो दर्ज करे तो आग अहं की भड़क उठे। कभी लोभ तो कभी दिखा भय मनमानी कर जाते हैं, घड़ा पाप का अपने हाथों जानबूझ भर लाते हैं। गली डगर हर गाँव शहर में कौरव वंशज घूम रहे, शीर्ष पदों पर काबिज़ हैं जो सब उनके पद चूम रहे। बेटी पत्नी बहन सखी माँ चलती हैं अंगारों पर, काट रही हैं जीवन के पल दो धारी तलवारों पर। घटना भले पुरानी हो पर दर्द ज़ख्म का हरा अभी, फूँके लाखों रावण हमने लेकिन वो क्या मरा कभी। अग्निपरीक्षा दे कर भी क्यों सीता ही वनवास सहें, जो बहार बाँटें दुनिया में वो पतझड़ का मास रहें। बोल रही क्यों आज सत्य वो सबकी पीड़ा व्यथा यही, शब्द बदलकर सुना रहे हैं चोरी चुपके कथा वही। तोड़ रूढ़ियों की जंज़ीरें आगे जो अब आई है, नई भोर की सुंदर आहट पांचाली वो लाई है। नहीं जली जौहर में यदि जो क्या कुल्टा कहलाएगी, कहो घिनौने उस अतीत से कबतक वो कतरायेगी। देवी पूजन करने वालों सच्चाई स्वीकार करो। दिखे दुशासन जहाँ कहीं भी रजत तीव्र प्रतिकार करो। – अवधेश कुमार रजत अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
नारी हित की बात करेंगे
नारी हित की बात करेंगे
पर आवाज़ दबाएंगे,
नैतिकता का पिंड दान कर
अपना राज चलाएंगे।
रूप सजा निकले जब घर से
गणिका तुल्य बताते हैं,
रहे सादगी में यदि औरत
कौड़ी मूल्य लगाते हैं।
नारी तन को देख वासना
रोम रोम में धधक उठे,
जब विरोध वो दर्ज करे तो
आग अहं की भड़क उठे।
कभी लोभ तो कभी दिखा भय
मनमानी कर जाते हैं,
घड़ा पाप का अपने हाथों
जानबूझ भर लाते हैं।
गली डगर हर गाँव शहर में
कौरव वंशज घूम रहे,
शीर्ष पदों पर काबिज़ हैं जो
सब उनके पद चूम रहे।
बेटी पत्नी बहन सखी माँ
चलती हैं अंगारों पर,
काट रही हैं जीवन के पल
दो धारी तलवारों पर।
घटना भले पुरानी हो पर
दर्द ज़ख्म का हरा अभी,
फूँके लाखों रावण हमने
लेकिन वो क्या मरा कभी।
अग्निपरीक्षा दे कर भी क्यों
सीता ही वनवास सहें,
जो बहार बाँटें दुनिया में
वो पतझड़ का मास रहें।
बोल रही क्यों आज सत्य वो
सबकी पीड़ा व्यथा यही,
शब्द बदलकर सुना रहे हैं
चोरी चुपके कथा वही।
तोड़ रूढ़ियों की जंज़ीरें
आगे जो अब आई है,
नई भोर की सुंदर आहट
पांचाली वो लाई है।
नहीं जली जौहर में यदि जो
क्या कुल्टा कहलाएगी,
कहो घिनौने उस अतीत से
कबतक वो कतरायेगी।
देवी पूजन करने वालों
सच्चाई स्वीकार करो।
दिखे दुशासन जहाँ कहीं भी
रजत तीव्र प्रतिकार करो।
– अवधेश कुमार रजत
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
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