अक्टूबर इकतीस को, जन्मे सन्त सुजान। झवेर भाई लाडबा, की चौथी सन्तान।। कष्टों से जब हुआ सामना, देश प्रेम की जगी भावना। लंदन से पढ़ भारत आये, आज़ादी की अलख जगाये।। कृषकों के हित लड़े लड़ाई, सत्याग्रह की कर अगुवाई। ओजपूर्ण थी भाषा शैली, कीर्ति देश में उनकी फैली।। जाति धर्म से ऊपर उठकर, रहे सदा वो सबसे जुड़कर। गृह मंत्री बन संसद आये, नव भारत का स्वप्न सजाये।। बिखरे सूबों को फिर जोड़ा, दम्भ निजामों का था तोड़ा। शब्दांजलि हम अर्पित करते, रजत दीप बन नित वो जलते।। नाडियाद गुजरात से, ऐसी चली बयार। जन मन के दिल में बसे, लौह पुरुष सरदार।। – अवधेश कुमार ‘रजत’ अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अक्टूबर इकतीस को,
अक्टूबर इकतीस को, जन्मे सन्त सुजान।
झवेर भाई लाडबा, की चौथी सन्तान।।
कष्टों से जब हुआ सामना,
देश प्रेम की जगी भावना।
लंदन से पढ़ भारत आये,
आज़ादी की अलख जगाये।।
कृषकों के हित लड़े लड़ाई,
सत्याग्रह की कर अगुवाई।
ओजपूर्ण थी भाषा शैली,
कीर्ति देश में उनकी फैली।।
जाति धर्म से ऊपर उठकर,
रहे सदा वो सबसे जुड़कर।
गृह मंत्री बन संसद आये,
नव भारत का स्वप्न सजाये।।
बिखरे सूबों को फिर जोड़ा,
दम्भ निजामों का था तोड़ा।
शब्दांजलि हम अर्पित करते,
रजत दीप बन नित वो जलते।।
नाडियाद गुजरात से, ऐसी चली बयार।
जन मन के दिल में बसे, लौह पुरुष सरदार।।
– अवधेश कुमार ‘रजत’
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
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