प्रश्न मन मे हैं अनगिन सभी के मगर ।
लोग चिन्तित ह्दय हैं इन्हे सोचकर ।
निर्धनों के कुपोषित ये बच्चे कहें ।
क्या मिलेगी हमें रोटियां पेटभर ।
जन्म पाकर हिन्द में अपनी बनी तकदीर है ।
भाईचारे की यहां ऐसी जुड़ी जंजीर है ।
बोलियां भाषा अलग हैं फ़र्क लेकिन कुछ नहीं ।
सच तो ये है ये यहां की मिट्टी की तासीर है ।
राहों में कितनी खड़ी हों मुश्किलें दुश्वारियां ।
छोड़ दूं कैसे भला मैं अपनी जिम्मेदारियां ।
यत्न से जो तुम लगोगे साधना पुरूषार्थ से ।
जायेंगी निश्चित संवर किस्मत की सारी क्यारियां ।
प्रश्न मन मे हैं
प्रश्न मन मे हैं अनगिन सभी के मगर ।
लोग चिन्तित ह्दय हैं इन्हे सोचकर ।
निर्धनों के कुपोषित ये बच्चे कहें ।
क्या मिलेगी हमें रोटियां पेटभर ।
जन्म पाकर हिन्द में अपनी बनी तकदीर है ।
भाईचारे की यहां ऐसी जुड़ी जंजीर है ।
बोलियां भाषा अलग हैं फ़र्क लेकिन कुछ नहीं ।
सच तो ये है ये यहां की मिट्टी की तासीर है ।
राहों में कितनी खड़ी हों मुश्किलें दुश्वारियां ।
छोड़ दूं कैसे भला मैं अपनी जिम्मेदारियां ।
यत्न से जो तुम लगोगे साधना पुरूषार्थ से ।
जायेंगी निश्चित संवर किस्मत की सारी क्यारियां ।
– नसीर बनारसी
मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी का कविता
मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी की रचनाएँ
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