प्रेम की धरती पर जब नफरतो की होली होती। देख लहू के रंग को जब भारत माँ रह रह रोती। शांति और प्रेम की धरती, नफरतो को कब तक सहेगी। आतंकवादी,हमलो से दहली कब तलब चुपी साधे रहेगी। वीरो व बलिदानो की धरती शहीदो का खुन बहा रही है। राजनीति की गंदी कुचालो से, जवानो पर गोली चला रही है। कौनसी ऐसी मजबूरी है जो हाथ जवानो के बाँध रखे है। कर दे जमींदोज कायरो को , नियमो मे उनको जकड़े रखे है। वीर प्रताप, शिवा की भूमि को, अपना शौर्य जग को दिखाना होगा। मातृभूमि पर मर मिटने वालो को लहू का कर्ज चुकाना होगा। खाल में छिपे उन जयचंद्रो को , खोज कर सामने लाना होगा। बहुत सोए लिए नैन मूँद कर अब गद्दारो से देश बचाना होगा। “हेमा” इस माटी का रंग हुआ लाल उखड़ गए चिथड़े ,कुछ पडे़ बेहाल। कायरो ने कर वार ,किया ऐसा हाल, लहू के रंग में रंग गए, माँ तेरे लाल। – हेमलता पालीवाल “हेमा” हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
प्रेम बनाम नफरत
प्रेम की धरती पर जब
नफरतो की होली होती।
देख लहू के रंग को जब
भारत माँ रह रह रोती।
शांति और प्रेम की धरती,
नफरतो को कब तक सहेगी।
आतंकवादी,हमलो से दहली
कब तलब चुपी साधे रहेगी।
वीरो व बलिदानो की धरती
शहीदो का खुन बहा रही है।
राजनीति की गंदी कुचालो से,
जवानो पर गोली चला रही है।
कौनसी ऐसी मजबूरी है जो
हाथ जवानो के बाँध रखे है।
कर दे जमींदोज कायरो को ,
नियमो मे उनको जकड़े रखे है।
वीर प्रताप, शिवा की भूमि को,
अपना शौर्य जग को दिखाना होगा।
मातृभूमि पर मर मिटने वालो को
लहू का कर्ज चुकाना होगा।
खाल में छिपे उन जयचंद्रो को ,
खोज कर सामने लाना होगा।
बहुत सोए लिए नैन मूँद कर
अब गद्दारो से देश बचाना होगा।
“हेमा” इस माटी का रंग हुआ लाल
उखड़ गए चिथड़े ,कुछ पडे़ बेहाल।
कायरो ने कर वार ,किया ऐसा हाल,
लहू के रंग में रंग गए, माँ तेरे लाल।
– हेमलता पालीवाल “हेमा”
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ
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