पुराने देवताओं की जगह
नये-नये देवताओं ने
कार्यभार सँभाला
और पुराने देवों को
उनके देवालयों से बलपूर्वक निकाला
क्योंकि वे चार्ज लेने-देने में
कर रहे थे आनाकानी
लेकिन ये नये देवता भी
करने लग गये मन-मानी
नये देवता के
नये मन्दिरों में
इन्सानों की कुर्बानी
यह देख पुराने देवता
अपने-अपने हाल पर रो रहे हैं
क्योंकि इन नये देवों को भी आदमी की तरह आदमी का
खून मुँह लग गया है
यघपि कि अहिंसा के देवतुल्य
गाँधी का जमाना
गुजर गया
वह वेचारा भी
जो खुद खून के वेग को
रोक न सका था
बल्कि उसमें खुद बह गया
पुराने देवताओं की जगह
पुराने देवताओं की जगह
नये-नये देवताओं ने
कार्यभार सँभाला
और पुराने देवों को
उनके देवालयों से बलपूर्वक निकाला
क्योंकि वे चार्ज लेने-देने में
कर रहे थे आनाकानी
लेकिन ये नये देवता भी
करने लग गये मन-मानी
नये देवता के
नये मन्दिरों में
इन्सानों की कुर्बानी
यह देख पुराने देवता
अपने-अपने हाल पर रो रहे हैं
क्योंकि इन नये देवों को भी आदमी की तरह आदमी का
खून मुँह लग गया है
यघपि कि अहिंसा के देवतुल्य
गाँधी का जमाना
गुजर गया
वह वेचारा भी
जो खुद खून के वेग को
रोक न सका था
बल्कि उसमें खुद बह गया
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें