कुछ एहसास अजनबी से जागे तो हैं मगर उन एहसासों को अल्फ़ाज़ो में ढाल ना सके आँखों से चाहत के मोती बिखरे तो हैं मगर उन बहते मोतियों को सहेज़ कर रख ना सके हर साँस उनसे मुहब्बत करती तो है मगर बातें ही कुछ ऐसी थी कि हम कह ना सके एक सफ़र साथ चलने की ख़्वाहिश तो है मगर अपनी राहों को उनके हमराह कर ना सके –एकता खान एकता खान जी की ग़ज़ल एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कुछ एहसास अजनबी से जागे तो हैं मगर
कुछ एहसास अजनबी से जागे तो हैं मगर
उन एहसासों को अल्फ़ाज़ो में ढाल ना सके
आँखों से चाहत के मोती बिखरे तो हैं मगर
उन बहते मोतियों को सहेज़ कर रख ना सके
हर साँस उनसे मुहब्बत करती तो है मगर
बातें ही कुछ ऐसी थी कि हम कह ना सके
एक सफ़र साथ चलने की ख़्वाहिश तो है मगर
अपनी राहों को उनके हमराह कर ना सके
–एकता खान
एकता खान जी की ग़ज़ल
एकता खान जी की रचनाएँ
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