उसकी हसरत में शामिल जर्रा भी आफ़ताब लगता है वो पत्थरो को भी सलीके से लगा दे तो ताज लगता है। आसमाँ, आसमाँ नही आज कल ज़मी लगता है इक चेहरा जब से चाँद से भी ज्यादा हसीं लगता है वक़्त औऱ दूरियां कुछ भी मायने नही रखते जो प्यार में अंधे हो वो घरो में भी आईने नही रखते । – नमिता नज़्म नमिता नज़्म जी की प्यार की दास्तान पर कविता नमिता नज़्म जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
प्यार की दास्तान पर कविता
उसकी हसरत में शामिल जर्रा भी
आफ़ताब लगता है
वो पत्थरो को भी सलीके से लगा दे तो ताज लगता है।
आसमाँ, आसमाँ नही आज कल
ज़मी लगता है
इक चेहरा जब से चाँद से भी
ज्यादा हसीं लगता है
वक़्त औऱ दूरियां कुछ भी मायने
नही रखते
जो प्यार में अंधे हो वो घरो में भी
आईने नही रखते ।
– नमिता नज़्म
नमिता नज़्म जी की प्यार की दास्तान पर कविता
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