प्यार की जो फ़सल बो गए आदमी वो किधर को गए फूल ही फूल थे सब यहाँ कौन काँटे इधर बो गए हम कहें अब किसे आदमी आदमी तो असल खो गए देख बदलाव कैसा हुआ गाँव भी अब शहर हो गए जो कभी थे हमारा जिगर ग़ैर के हमसफ़र हो गए बाद मुद्दत के जब हम मिले बात कर ना सके रो गए गीत लिखते थे “जगदीश” तुम क्यों ग़ज़ल की नज़र हो गए – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
प्यार की जो फ़सल बो गए
प्यार की जो फ़सल बो गए
आदमी वो किधर को गए
फूल ही फूल थे सब यहाँ
कौन काँटे इधर बो गए
हम कहें अब किसे आदमी
आदमी तो असल खो गए
देख बदलाव कैसा हुआ
गाँव भी अब शहर हो गए
जो कभी थे हमारा जिगर
ग़ैर के हमसफ़र हो गए
बाद मुद्दत के जब हम मिले
बात कर ना सके रो गए
गीत लिखते थे “जगदीश” तुम
क्यों ग़ज़ल की नज़र हो गए
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
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