रामा चला गया..
अपने परिवार की याद में घुटकर,
चेन्नई से यहाँ के संक्रमण में ,
उसका पशु मन नहीं कर पाया सामंजस्य,
वो मूक समझ न पाया,
बदले भौतिक परिवेश में,
नए देखभाल कर्मियों के नए संकेत।
चिड़ियाघर अब जैविक उद्यान हो गए हैं,
जहाँ तर्कयुक्त बंधी हुईं आजादी है,
खुले आसमां के जिल्द में लिपटी,
सीमित दीवारों वाली जमीन के साथ।
डेढ़ माह की बीमारी की वजह,
नहीं समझ पाए विशेषज्ञ।
भोजन दवा और हवा के साथ,
जो चाहिये था जीवन रक्षक सत्व ..
वो तो पीछे ही छूट गया था,
पोस्ट मार्टम गुर्दे फेल होना बता रहा है
पर इसके जिम्मेदार….
अकेलेपन, अपने जंगल से दूरी,
अदृश्य बंधनों के जानलेवा कीटाणु,
निदान न हुए किसी जांच में।
काले सफेद के ख़ूनी संघर्ष
और ग़ुलामी को भुगत चुके हैं हम..
फिर भी बना दिया उसे ग़ुलाम!
सफ़ेद होना ही जुर्म बना उसका,
और नतीज़ा – भुगती उसने
काले पानी की सज़ा।
नली का भोजन
दे सकता था कुछ साँसे,
पर नहीं बन सका
वो प्राण दायक तत्व …
जो रिस गया था धीरे धीरे,
रामा के गिरते वजन के साथ
उसकी आत्मा से होकर …
उसके बेजान शरीर के बाहर…
रामा चला गया
रामा चला गया..
अपने परिवार की याद में घुटकर,
चेन्नई से यहाँ के संक्रमण में ,
उसका पशु मन नहीं कर पाया सामंजस्य,
वो मूक समझ न पाया,
बदले भौतिक परिवेश में,
नए देखभाल कर्मियों के नए संकेत।
चिड़ियाघर अब जैविक उद्यान हो गए हैं,
जहाँ तर्कयुक्त बंधी हुईं आजादी है,
खुले आसमां के जिल्द में लिपटी,
सीमित दीवारों वाली जमीन के साथ।
डेढ़ माह की बीमारी की वजह,
नहीं समझ पाए विशेषज्ञ।
भोजन दवा और हवा के साथ,
जो चाहिये था जीवन रक्षक सत्व ..
वो तो पीछे ही छूट गया था,
पोस्ट मार्टम गुर्दे फेल होना बता रहा है
पर इसके जिम्मेदार….
अकेलेपन, अपने जंगल से दूरी,
अदृश्य बंधनों के जानलेवा कीटाणु,
निदान न हुए किसी जांच में।
काले सफेद के ख़ूनी संघर्ष
और ग़ुलामी को भुगत चुके हैं हम..
फिर भी बना दिया उसे ग़ुलाम!
सफ़ेद होना ही जुर्म बना उसका,
और नतीज़ा – भुगती उसने
काले पानी की सज़ा।
नली का भोजन
दे सकता था कुछ साँसे,
पर नहीं बन सका
वो प्राण दायक तत्व …
जो रिस गया था धीरे धीरे,
रामा के गिरते वजन के साथ
उसकी आत्मा से होकर …
उसके बेजान शरीर के बाहर…
– दीपा पंत ‘शीतल’
कवयित्री दीपा पन्त 'शीतल' जी की कविताएँ
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