रंगत मिलेगी हर सू मेरी ही दास्ताँ की देखेगा जब भी कोई तारीख़ गुलसिताँ की हसरत है इस अदा से देखे वो मेरी जानिब तकती हैं जैसे नज़रें धरती को आसमाँ की बेकैफ़ दर्दे-दिल की तक़दीर कोई देखे आती है पुरसिशों को बारात कहकशाँ की परदेश में ख़ुशी से आये थे हम मगर अब आती है याद हमको क्यों अपने आशियाँ की गर यह ग़ुमान होता रहबर रक़ीब होंगे राहों में रोक लेता रफ़्तार कारवाँ की इक शख़्स पूछ बैठा मुझसे मेरी कहानी जब खा चुकी थी दीमक तहरीर दास्ताँ की जब उम्रे-मुख़तसर का यह रंग है तो साग़र माँगें दुआएं क्यों कर फिर उम्रे-जाविदाँ की –विनय साग़र जायसवाल विनय साग़र जायसवाल जी की रंगत मिलेगी पर ग़ज़ल विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
रंगत मिलेगी हर सू मेरी ही दास्ताँ की
रंगत मिलेगी हर सू मेरी ही दास्ताँ की
देखेगा जब भी कोई तारीख़ गुलसिताँ की
हसरत है इस अदा से देखे वो मेरी जानिब
तकती हैं जैसे नज़रें धरती को आसमाँ की
बेकैफ़ दर्दे-दिल की तक़दीर कोई देखे
आती है पुरसिशों को बारात कहकशाँ की
परदेश में ख़ुशी से आये थे हम मगर अब
आती है याद हमको क्यों अपने आशियाँ की
गर यह ग़ुमान होता रहबर रक़ीब होंगे
राहों में रोक लेता रफ़्तार कारवाँ की
इक शख़्स पूछ बैठा मुझसे मेरी कहानी
जब खा चुकी थी दीमक तहरीर दास्ताँ की
जब उम्रे-मुख़तसर का यह रंग है तो साग़र
माँगें दुआएं क्यों कर फिर उम्रे-जाविदाँ की
–विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल जी की रंगत मिलेगी पर ग़ज़ल
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