रगे खू में क्या घुला क्या कहें हम जबाँ रख के बेजुबाँ क्यूं रहें हम जबाँ पर ताले लगे है ज़र्फ़ के कम ज़र्फ़ को कम ज़र्फ़ ना कहें हम उजाड़ा घर को सियासतगरों ने कहाँ जाकर बोलिये अब रहें हम मुनासिब ये तो नहीं हो सकेगा तमाशा देखा करे चुप रहे हम गुलाबों की क्यूं घटी है ललाई कहो क्या बनके लहू फिर बहें हम – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
रगे खू में क्या
रगे खू में क्या घुला क्या कहें हम
जबाँ रख के बेजुबाँ क्यूं रहें हम
जबाँ पर ताले लगे है ज़र्फ़ के
कम ज़र्फ़ को कम ज़र्फ़ ना कहें हम
उजाड़ा घर को सियासतगरों ने
कहाँ जाकर बोलिये अब रहें हम
मुनासिब ये तो नहीं हो सकेगा
तमाशा देखा करे चुप रहे हम
गुलाबों की क्यूं घटी है ललाई
कहो क्या बनके लहू फिर बहें हम
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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