सम्बन्धों के द्वार पर कभी जमे ना जंग अपनेपन और प्रीत का भर दे इनमें रंग हो जायेगा एक दिन इस दुनिया से गोल जब तक जीवित है सनम कर जा अच्छे रोल सच की चादर ओड़ कर घड़ा झूठ का फोड़ सच के बल पर ही सनम जीवन को दे मोड़ माँ की ममता का बता कौन दे सका मोल पगले ! इसे न आँकना ये तो है अनमोल नहीं मिलेगी शहर में अपनेपन की छाँव रुक जा मेरे साजना छोड़ न अपना गाँव गंगा भी मैली हुई यमुना भी लाचार कैसे जाल बिछा रहा देख प्रदूषण यार जोड़ तोड़ कर लिया तूने अपना काम फिर भी अपनों बीच तू क्यों न पा सका नाम – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सम्बन्धों के द्वार पर
सम्बन्धों के द्वार पर कभी जमे ना जंग
अपनेपन और प्रीत का भर दे इनमें रंग
हो जायेगा एक दिन इस दुनिया से गोल
जब तक जीवित है सनम कर जा अच्छे रोल
सच की चादर ओड़ कर घड़ा झूठ का फोड़
सच के बल पर ही सनम जीवन को दे मोड़
माँ की ममता का बता कौन दे सका मोल
पगले ! इसे न आँकना ये तो है अनमोल
नहीं मिलेगी शहर में अपनेपन की छाँव
रुक जा मेरे साजना छोड़ न अपना गाँव
गंगा भी मैली हुई यमुना भी लाचार
कैसे जाल बिछा रहा देख प्रदूषण यार
जोड़ तोड़ कर लिया तूने अपना काम
फिर भी अपनों बीच तू क्यों न पा सका नाम
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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