समझ नहीं सकता कभी दूजों के जज़्बात अहंकार में डूबकर जो करता है बात चलते चलते थक गया यह बिल्कुल मत सोच चलते रहना जंग है यह जीवन की लोच कुछ तो ऐसा काम कर तेरा हो गुणगान और यहाँ तनकर चले तेरी ये संतान जो भी करता तू यहाँ देख रहा जगदीश सुनकर सच्ची बात ये दाँत न ऐसे पीस भाई ! इस संसार में पैसा ही है मूल पैसा ना गर पास में चाटोगे तुम धूल कुछ तो अपने आप से भाई कर तू बात अन्तस का दीपक जला भगा यहाँ से रात जब दोहा करने लगा नये ढंग से बात कवि व्यक्त करने लगा दोहों में जज़्बात – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
समझ नहीं सकता
समझ नहीं सकता कभी दूजों के जज़्बात
अहंकार में डूबकर जो करता है बात
चलते चलते थक गया यह बिल्कुल मत सोच
चलते रहना जंग है यह जीवन की लोच
कुछ तो ऐसा काम कर तेरा हो गुणगान
और यहाँ तनकर चले तेरी ये संतान
जो भी करता तू यहाँ देख रहा जगदीश
सुनकर सच्ची बात ये दाँत न ऐसे पीस
भाई ! इस संसार में पैसा ही है मूल
पैसा ना गर पास में चाटोगे तुम धूल
कुछ तो अपने आप से भाई कर तू बात
अन्तस का दीपक जला भगा यहाँ से रात
जब दोहा करने लगा नये ढंग से बात
कवि व्यक्त करने लगा दोहों में जज़्बात
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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