शहरी आँधी में रमा, दूर हो गया गाँव । मीत! कहीं दीखे नहीं, पीपल बरगद छाँव।। पीपल बरगद छाँव, हाय! हुई एक सपना; अपना था रे गाँव, शहर हुआ नहीं अपना। अब जीवन की नाव, हमारी ठहरी ठहरी; कहने को हम मीत, जहाँ में बाबू शहरी।। – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के छंद जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
शहरी आँधी में रमा,
शहरी आँधी में रमा, दूर हो गया गाँव ।
मीत! कहीं दीखे नहीं, पीपल बरगद छाँव।।
पीपल बरगद छाँव, हाय! हुई एक सपना;
अपना था रे गाँव, शहर हुआ नहीं अपना।
अब जीवन की नाव, हमारी ठहरी ठहरी;
कहने को हम मीत, जहाँ में बाबू शहरी।।
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी के छंद
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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