सिफारिश से शोहरत नहीं चाहिए अब किसी की इनायत नहीं चाहिए बागबां से परिंदों ने कह ही दिया अब चमन में शरारत नहीं चाहिए दोस्ती से यकीं उठ गया इस कदर दोस्तों की हिफाज़त नहीं चाहिए जिसकी बुनियाद हो आदमी का लहू मुल्क को वो सियासत नहीं चाहिए जिस्म सजकर बज़ारों में बिकने लगे हद हुई अब तिजारत नहीं चाहिए कत्ल भी खुद करे और इन्साफ भी मुझे ऐसी अदालत नहीं चाहिए – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सिफारिश से शोहरत नहीं चाहिए
सिफारिश से शोहरत नहीं चाहिए
अब किसी की इनायत नहीं चाहिए
बागबां से परिंदों ने कह ही दिया
अब चमन में शरारत नहीं चाहिए
दोस्ती से यकीं उठ गया इस कदर
दोस्तों की हिफाज़त नहीं चाहिए
जिसकी बुनियाद हो आदमी का लहू
मुल्क को वो सियासत नहीं चाहिए
जिस्म सजकर बज़ारों में बिकने लगे
हद हुई अब तिजारत नहीं चाहिए
कत्ल भी खुद करे और इन्साफ भी
मुझे ऐसी अदालत नहीं चाहिए
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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