सच का आँगन जल रहा सच का जला मकान क़दम क़दम पर हँस रहा झूठा बेईमान गन्दों से तू दूर रह गन्दों से मुख मोड़ करनी है तो कर यहाँ अच्छों से तू होड़ लोकतंत्र में हँस रहा राजतंत्र पी भंग सब उसके सत्कार में बजा रहे हैं चंग भाई ! देख समाज में कैसा आया मोड़ बेटे विदेश जा रहे घर में बूढ़े छोड़ कोई तो ऐसा मिले मुझे एक इन्सान जो चुगली खाता नहीं नहीं भरे जो कान प्रीत भरा मिलने लगा जब अपनों से नेह नयनों से ना रुक सका रिमझिम रिमझिम मेह सच आँगन की तोड़ दी जब तूने तस्वीर कैसे चमके गी बता फिर तेरी तक़दीर – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सच का आँगन जल रहा
सच का आँगन जल रहा सच का जला मकान
क़दम क़दम पर हँस रहा झूठा बेईमान
गन्दों से तू दूर रह गन्दों से मुख मोड़
करनी है तो कर यहाँ अच्छों से तू होड़
लोकतंत्र में हँस रहा राजतंत्र पी भंग
सब उसके सत्कार में बजा रहे हैं चंग
भाई ! देख समाज में कैसा आया मोड़
बेटे विदेश जा रहे घर में बूढ़े छोड़
कोई तो ऐसा मिले मुझे एक इन्सान
जो चुगली खाता नहीं नहीं भरे जो कान
प्रीत भरा मिलने लगा जब अपनों से नेह
नयनों से ना रुक सका रिमझिम रिमझिम मेह
सच आँगन की तोड़ दी जब तूने तस्वीर
कैसे चमके गी बता फिर तेरी तक़दीर
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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