तुम्हारी छटपटाहट देखी नहीं जाती मुझसे
गुजरे वक़्त ने जो तुम पर जुल्म ढाए
उन सब का बदला
मैजूदा वक़्त से लेना ठीक नहीं
अपनों से लड़ रही हो या अपने-आप से
जानता हूं जब तुम चलना सीख रही थी तो
किसी ने तुम्हें अंगुली पकड़कर सहारा नहीं दिया
ठोकरें खाकर ही चलना सीखा जाता है
और जब चलने लगी तो
तुम्हारे कदमों के नीचे से जमीन भी खींच ली गई
आसमान तो जुल्म ही करता आया तुम पर
कितनी ही हसरतें तुम पर ही आके खत्म हो जाती थीं
उन दिनों और आज भी
ख़ून के आंसू रोती आई हो तुम
मुस्कराते हुए खिलखिलाते हुए
तुम ख़ुश कहां हो
जब तुम्हें लाल सूर्ख जोड़े में विदा किया गया
कितने ख़्वाब थे तुम्हारी आंखों में
उस पहली रात में ही सब के सब
टुकड़े-टुकड़े हो चुके थे
बह चुके थे आंसुओं के साथ
एक सूरज की दरकार रही है तुम्हे हमेशा |
सूरज की दरकार
तुम्हारी छटपटाहट देखी नहीं जाती मुझसे
गुजरे वक़्त ने जो तुम पर जुल्म ढाए
उन सब का बदला
मैजूदा वक़्त से लेना ठीक नहीं
अपनों से लड़ रही हो या अपने-आप से
जानता हूं जब तुम चलना सीख रही थी तो
किसी ने तुम्हें अंगुली पकड़कर सहारा नहीं दिया
ठोकरें खाकर ही चलना सीखा जाता है
और जब चलने लगी तो
तुम्हारे कदमों के नीचे से जमीन भी खींच ली गई
आसमान तो जुल्म ही करता आया तुम पर
कितनी ही हसरतें तुम पर ही आके खत्म हो जाती थीं
उन दिनों और आज भी
ख़ून के आंसू रोती आई हो तुम
मुस्कराते हुए खिलखिलाते हुए
तुम ख़ुश कहां हो
जब तुम्हें लाल सूर्ख जोड़े में विदा किया गया
कितने ख़्वाब थे तुम्हारी आंखों में
उस पहली रात में ही सब के सब
टुकड़े-टुकड़े हो चुके थे
बह चुके थे आंसुओं के साथ
एक सूरज की दरकार रही है तुम्हे हमेशा |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की कविता
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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