सूरज तक पाबन्द है देख ! समय के हाथ फिर तू क्यों चलता नहीं मीत समय के साथ मीत ! समय के साथ चल, समय न कर बेकार गया समय आता नहीं वापस अपने द्वार नयनों ने जब पढ़ लिया उसके हिय का ज्वार लपक झपक करने लगा मेरे हिय का द्वार अपनों में विश्वास का इतना छिड़को रंग गली गली में बज उठे अपनेपन का चंग आता खाली हाथ है जाता खाली हाथ कौन साथ आया यहाँ कौन गया है साथ बात बात पर इस तरह दिखलाओ ना रूल रह जाये ना बात वो भाई ! जो है मूल छोटी-छोटी बात को इतना मत दो तूल सम्बन्धों के द्वार पर जमा न डाले धूल – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सूरज तक पाबन्द है देख
सूरज तक पाबन्द है देख ! समय के हाथ
फिर तू क्यों चलता नहीं मीत समय के साथ
मीत ! समय के साथ चल, समय न कर बेकार
गया समय आता नहीं वापस अपने द्वार
नयनों ने जब पढ़ लिया उसके हिय का ज्वार
लपक झपक करने लगा मेरे हिय का द्वार
अपनों में विश्वास का इतना छिड़को रंग
गली गली में बज उठे अपनेपन का चंग
आता खाली हाथ है जाता खाली हाथ
कौन साथ आया यहाँ कौन गया है साथ
बात बात पर इस तरह दिखलाओ ना रूल
रह जाये ना बात वो भाई ! जो है मूल
छोटी-छोटी बात को इतना मत दो तूल
सम्बन्धों के द्वार पर जमा न डाले धूल
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
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