मैं हूँ व्यथा का बोझ सखी तू फुलवारी कोमल उपवन की । मैं बोली चट्टानों जैसी तू भाषा गिरते सावन [...]
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मैं हूँ व्यथा का बोझ सखी
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धैर्य पर यहाँ स्वयम के तू अभी न वार कर
धैर्य पर यहाँ स्वयम के तू अभी न वार कर पुकारता है तू किसे ठहर जरा विचार कर । बदल [...] More -
फिर वही माझी खड़ा है फिर वही पतवार मेरी
कश्तियों ने आज तट से फिर मुझे गुंजन सुनाई फिर कोई ललकार तट की धारियों से छन के आयी सिंधु [...] More