तन्हा होकर भी मैं तो न तन्हा रहा रात भर दीप जो, साथ जलता रहा होके तुझसे जुदा मैं बिखरता रहा एक तू ही मगर, मुझको जँचता रहा साज के दर्द से, लोग हैं बेख़बर राग बजता रहा, दर्द बढ़ता रहा दे गया वो दग़ा, यार था जो कभी चाल चलता रहा, साथ चलता रहा प्यार हमने किया, सब हदें तोड़कर बेवफ़ा फिर भी हमको ही छलता रहा बात क्या हो गयी, छोड़कर क्यों गये मैं यही सोचकर, हाथ मलता रहा चुभ गयी बात वो, बात सच थी मगर दर्द सहता रहा, प्यार बचता रहा है मुहब्बत की तहरीर जैसे कोई वो मुझे मैं उसे यूँ ही पढ़ता रहा दर्दे दिल को बता ‘शाद’ कैसे सहे जो मिला ज़िक्र उसका ही करता रहा – शाद उदयपुरी शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
तन्हा होकर भी मैं
तन्हा होकर भी मैं तो न तन्हा रहा
रात भर दीप जो, साथ जलता रहा
होके तुझसे जुदा मैं बिखरता रहा
एक तू ही मगर, मुझको जँचता रहा
साज के दर्द से, लोग हैं बेख़बर
राग बजता रहा, दर्द बढ़ता रहा
दे गया वो दग़ा, यार था जो कभी
चाल चलता रहा, साथ चलता रहा
प्यार हमने किया, सब हदें तोड़कर
बेवफ़ा फिर भी हमको ही छलता रहा
बात क्या हो गयी, छोड़कर क्यों गये
मैं यही सोचकर, हाथ मलता रहा
चुभ गयी बात वो, बात सच थी मगर
दर्द सहता रहा, प्यार बचता रहा
है मुहब्बत की तहरीर जैसे कोई
वो मुझे मैं उसे यूँ ही पढ़ता रहा
दर्दे दिल को बता ‘शाद’ कैसे सहे
जो मिला ज़िक्र उसका ही करता रहा
– शाद उदयपुरी
शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल
शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें