तेरी कहानी का बस एक, किरदार बनना चाहती हूँ, तुझे बेइंतहा चाह कर, फिर गुनहगार बनना चाहती हूँ। मालूम है, तुझे गवांरा नहीं , मेरा साथ ज़रा दूर तलक भी, तेरे दामन का नहीं, तेरे साये का हक़दार बनना चाहती हूँ। माना कि मुझे भुला देगा तू, बस एक किस्सा समझ कर, पर फिर भी, तेरी यादों का हिस्सा, एक बार बनना चाहती हूँ। मेरी अन्धेरी रातों का चांद, बस एक बार जो तू बन जाये इस उम्मीद में अमावस रात, हर बार बनना चाहती हूँ। – दीपा पंत ‘शीतल’ दीपा पन्त 'शीतल' जी की कविता कवयित्री दीपा पन्त 'शीतल' जी कविताएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बनना चाहती हूँ
तेरी कहानी का बस एक,
किरदार बनना चाहती हूँ,
तुझे बेइंतहा चाह कर,
फिर गुनहगार बनना चाहती हूँ।
मालूम है, तुझे गवांरा नहीं ,
मेरा साथ ज़रा दूर तलक भी,
तेरे दामन का नहीं, तेरे साये का
हक़दार बनना चाहती हूँ।
माना कि मुझे भुला देगा तू,
बस एक किस्सा समझ कर,
पर फिर भी, तेरी यादों का हिस्सा,
एक बार बनना चाहती हूँ।
मेरी अन्धेरी रातों का चांद,
बस एक बार जो तू बन जाये
इस उम्मीद में अमावस रात,
हर बार बनना चाहती हूँ।
– दीपा पंत ‘शीतल’
दीपा पन्त 'शीतल' जी की कविता
कवयित्री दीपा पन्त 'शीतल' जी कविताएँ
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