तुम लाख दूर जाओ मगर कुछ भी नहीं होना हम दोनो साथ रहने की ख़ातिर हुए हैं पैदा हसरत नहीं हैं मुझको कि महलों में हो ठिकाना ये आसमाँ चादर हैं मेरी ये ज़मी बिछौना पैसे कमाने के लिये क्या क्या पड़ा है खोना देखूँ मैं पीछे मुड़ के तो आता हैं मुझको रोना समझा है तूने मुझको कि जैसे हूँ मैं खिलौना लगता हैं मुझपे करते हो तुम कोई जादू टोना हमसे वफ़ा की खुशबुएँ दुनियाँ में फ़ैलती हैं ये सुनलो कान खोलके हमको न आज़माना तितली की तरह उड़कर तुम आओगी मेरी जानिब कर दूंगा तुमको एक दिन अपना मैं जब दीवाना शिकवे तमाम तेरे कर देंगे दूर लेकिन नफ़रत के बीज़ दिल में मुझको नहीं है बोना गर छोड़कर गया मैं कभी दुनियाँ को बिन बताये आँखों को अपनी अश्कों से हरगिज़ न तुम भिगोना ऐ शाद तेरे लब्ज़ों ने वो काम कर दिया है ज़ख़्मों से मेरे बच न सका दिल का कोई कोना – शाद उदयपुरी शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
तुम लाख दूर जाओ
तुम लाख दूर जाओ मगर कुछ भी नहीं होना
हम दोनो साथ रहने की ख़ातिर हुए हैं पैदा
हसरत नहीं हैं मुझको कि महलों में हो ठिकाना
ये आसमाँ चादर हैं मेरी ये ज़मी बिछौना
पैसे कमाने के लिये क्या क्या पड़ा है खोना
देखूँ मैं पीछे मुड़ के तो आता हैं मुझको रोना
समझा है तूने मुझको कि जैसे हूँ मैं खिलौना
लगता हैं मुझपे करते हो तुम कोई जादू टोना
हमसे वफ़ा की खुशबुएँ दुनियाँ में फ़ैलती हैं
ये सुनलो कान खोलके हमको न आज़माना
तितली की तरह उड़कर तुम आओगी मेरी जानिब
कर दूंगा तुमको एक दिन अपना मैं जब दीवाना
शिकवे तमाम तेरे कर देंगे दूर लेकिन
नफ़रत के बीज़ दिल में मुझको नहीं है बोना
गर छोड़कर गया मैं कभी दुनियाँ को बिन बताये
आँखों को अपनी अश्कों से हरगिज़ न तुम भिगोना
ऐ शाद तेरे लब्ज़ों ने वो काम कर दिया है
ज़ख़्मों से मेरे बच न सका दिल का कोई कोना
– शाद उदयपुरी
शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल
शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ
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