सुनो! हां…तुम मैं तुम से ही मुख़ातिब हूं तुम्हारी मुस्कराहट में जो दर्द छुपा है उसका कुछ हिस्सा मुझे दे दो | या फिर कह दो मैं तुम्हारे क़ाबिल नहीं सुनो! तुम्हारे दर्दों-ग़म पर अपनी ख़ुशियां वारना चाहता हूं कब से गुनहगार हूं माफ़ी का तलबगार हूं सुनो! मेरा होना तुम्हारे बग़ैर बेमानी लगता है मुझे कितना वक़्त गुज़र गया इस सच को क़बूल करने में सुनो! गुनगुनाना चाहता हूं तुम्हें रोना चाहता हूं तुम्हारा रोना बहाना चाहता हूं तुम्हारे आंसू होना चाहता हूं तुम्हारे क़ाबिल | – इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
सुनो हां…तुम
सुनो!
हां…तुम
मैं तुम से ही मुख़ातिब हूं
तुम्हारी मुस्कराहट में
जो दर्द छुपा है
उसका कुछ हिस्सा
मुझे दे दो |
या फिर कह दो
मैं तुम्हारे क़ाबिल नहीं
सुनो!
तुम्हारे दर्दों-ग़म पर
अपनी ख़ुशियां वारना चाहता हूं
कब से गुनहगार हूं
माफ़ी का तलबगार हूं
सुनो!
मेरा होना
तुम्हारे बग़ैर
बेमानी लगता है मुझे
कितना वक़्त गुज़र गया
इस सच को क़बूल करने में
सुनो!
गुनगुनाना चाहता हूं तुम्हें
रोना चाहता हूं
तुम्हारा रोना
बहाना चाहता हूं तुम्हारे आंसू
होना चाहता हूं
तुम्हारे क़ाबिल |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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