तुम नहीं पुकारोगे,
तो क्या खो जाऊँगी मैं ?
तुम नहीं मनाओगे,
तो क्या रूठी ही रह जाऊँगी मैं ?
तुम नहीं समेटोगे,
तो क्या बिखर जाऊँगी मैं ?
तुम नहीं थामोगे,
तो क्या टूट जाऊँगी मैं ?
नहीं!
आँखे होंगी भरी,
पर तब भी मुस्कुराऊँगी मैं,
दिल होगा भारी,
पर तब भी गुनगुनाऊँगी मैं।
कुछ तो डगमगाऊँगी,
पर संभल ही जाऊँगी मैंl
हाँ,मुश्किल तो होगा बहुत,
पर ऐसे ही तुम्हें भूल जाऊँगी मैं
तुम नहीं पुकारोगे
तुम नहीं पुकारोगे,
तो क्या खो जाऊँगी मैं ?
तुम नहीं मनाओगे,
तो क्या रूठी ही रह जाऊँगी मैं ?
तुम नहीं समेटोगे,
तो क्या बिखर जाऊँगी मैं ?
तुम नहीं थामोगे,
तो क्या टूट जाऊँगी मैं ?
नहीं!
आँखे होंगी भरी,
पर तब भी मुस्कुराऊँगी मैं,
दिल होगा भारी,
पर तब भी गुनगुनाऊँगी मैं।
कुछ तो डगमगाऊँगी,
पर संभल ही जाऊँगी मैंl
हाँ,मुश्किल तो होगा बहुत,
पर ऐसे ही तुम्हें भूल जाऊँगी मैं
– दीपा पंत ‘शीतल’
दीपा पंत 'शीतल' जी की तुम्हें भूल जाऊँगी पर कविता
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