तुम्हें सोचता हूं तो
भूल जाता हूं ख़ुद को
मेरा होना याद ही नहीं रहता
मुझे कई बार
हां जानता हूं
तुम्हारे साथ भी
ऐसा ही होता होगा
कई बार
मेरी तरह तुम भी
ख़ुद को
याद करने की कोशिश करती होगी
देखती होगी
अपने कमरे में
बेतरतीब रखी चीजों को
मुझ में खोई
कितनी सुन्दर लगती हो तुम
आईना देखते वक़्त
कुछ ऐसा ही सोचती
जैसे यह सब मैं सोच रहा हूं |
तुम्हें सोचता हूं तो
तुम्हें सोचता हूं तो
भूल जाता हूं ख़ुद को
मेरा होना याद ही नहीं रहता
मुझे कई बार
हां जानता हूं
तुम्हारे साथ भी
ऐसा ही होता होगा
कई बार
मेरी तरह तुम भी
ख़ुद को
याद करने की कोशिश करती होगी
देखती होगी
अपने कमरे में
बेतरतीब रखी चीजों को
मुझ में खोई
कितनी सुन्दर लगती हो तुम
आईना देखते वक़्त
कुछ ऐसा ही सोचती
जैसे यह सब मैं सोच रहा हूं |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की कविता
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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