टूटे बिखरे दिल को अपने आज ख़ुद ही मरहम लगायी हूँ घायल से जज़्बातों को अपने आज ख़ुद ही दिलासे दिलायी हूँ अधूरी सी ख़्वाहिशों को अपने आज ख़ुद ही दफ़्न कर आयी हूँ आरज़ू प्यार की जो दिल को थी आज आस ही खत्म कर आयी हूँ मेरे रास्तों की मंज़िल न थी आज वो सफ़र ही छोड़ आयी हूँ – एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
टूटे बिखरे दिल को अपने
टूटे बिखरे दिल को अपने
आज ख़ुद ही मरहम लगायी हूँ
घायल से जज़्बातों को अपने
आज ख़ुद ही दिलासे दिलायी हूँ
अधूरी सी ख़्वाहिशों को अपने
आज ख़ुद ही दफ़्न कर आयी हूँ
आरज़ू प्यार की जो दिल को थी
आज आस ही खत्म कर आयी हूँ
मेरे रास्तों की मंज़िल न थी
आज वो सफ़र ही छोड़ आयी हूँ
– एकता खान
एकता खान जी की कविता
एकता खान जी की रचनाएँ
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