हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे ये एक हम ही थे जो फिर भी शान से गुज़रे कभी ज़मीन कभी आसमान से गुज़रे जुनूने-इश्क में किस-किस जहान से गुज़रे किसी की याद ने बेचैन कर दिया दिल को परिंदे उड़ते हुए जब मकान से गुज़रे हमारे इश्क के आलम की है मिसाल कहीं रह-ए-वफ़ा में बड़ी आनबान से गुज़रे जिन्होने अहदे-वफ़ा के दिये बुझाये थे तमाम नाम वही दास्तान से गुज़रे न आया हर्फ़े-शिकायत कभी भी होंटों पर हज़ार बार तेरे दर्मियान से गुज़रे कभी दिमाग़ कभी दिल ने हार मानी है तमाम उम्र यूँ हीं इम्तिहान से गुज़रे जो आज बच के गुज़रते हैं बूढ़े बरगद से कभी ये लोग इसी सायबान से गुज़रे हमारे शेर हैं मशहूर इसलिये साग़र हमारे शेर तुम्हारी ज़ुबान से गुज़रे – विनय साग़र जायसवाल विनय साग़र जायसवाल जी की टूटे दिल पर ग़ज़ल विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे
हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे
ये एक हम ही थे जो फिर भी शान से गुज़रे
कभी ज़मीन कभी आसमान से गुज़रे
जुनूने-इश्क में किस-किस जहान से गुज़रे
किसी की याद ने बेचैन कर दिया दिल को
परिंदे उड़ते हुए जब मकान से गुज़रे
हमारे इश्क के आलम की है मिसाल कहीं
रह-ए-वफ़ा में बड़ी आनबान से गुज़रे
जिन्होने अहदे-वफ़ा के दिये बुझाये थे
तमाम नाम वही दास्तान से गुज़रे
न आया हर्फ़े-शिकायत कभी भी होंटों पर
हज़ार बार तेरे दर्मियान से गुज़रे
कभी दिमाग़ कभी दिल ने हार मानी है
तमाम उम्र यूँ हीं इम्तिहान से गुज़रे
जो आज बच के गुज़रते हैं बूढ़े बरगद से
कभी ये लोग इसी सायबान से गुज़रे
हमारे शेर हैं मशहूर इसलिये साग़र
हमारे शेर तुम्हारी ज़ुबान से गुज़रे
– विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल जी की टूटे दिल पर ग़ज़ल
विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें