उनसे कुछ कहने की आरज़ू में बेज़ुबा अश्क़ यूँ ही निकल गए दिल की ख़ामोश गलियों में एहसासों के बादल यूँ ही बरस गए इन गलियों से कभी तो वो गुज़रेंगे ये उम्मीद किये सदियों गुज़र गए – एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
उनसे कुछ कहने की
उनसे कुछ कहने की आरज़ू में
बेज़ुबा अश्क़ यूँ ही निकल गए
दिल की ख़ामोश गलियों में
एहसासों के बादल यूँ ही बरस गए
इन गलियों से कभी तो वो गुज़रेंगे
ये उम्मीद किये सदियों गुज़र गए
– एकता खान
एकता खान जी की कविता
एकता खान जी की रचनाएँ
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