वह भिखारी है
भूख से व्याकुल
धँसी हुई आँखें
भूखी हैं और प्यास से प्यासी हैं
कितनी उदासी हैं
माँग रहा है
पैसा-दो पैसा
टुकड़ी भर रोटी
तैयार है
बेचने को लहू
अपने तन की बोटी
घूम रहा, बेचारा, लाचार
गाँव-गाँव, शहर-शहर
घर-घर, बाजार-बाजार
और द्वारे-द्वारे
हाथों को पसारे
दूसरे को
अभिनय का शौक है
उसे भिखारी के फटे-चिथे कपड़ों की
जरूरत है
भिखारी को बुलाता है
उसके गंदे कपड़े उतरवाता है
हड्डियों का ढाँचा
नंगा हो जाता है
एवज में दो रुपये में
खरीद लेता है वह
भिखारी के वस्त्रों को
मात्रा दो रुपयों में
लेकिन इन दो रुपयों से
भिखारी कब तक जियेगा
कितना खायेगा-पियेगा
अभिनय के बाद
तत्काल उतारकर
उसके कपड़े फेंक दिये जायेंगे
क्योंकि भिखारी का
भिखमंगा पन
कोई नहीं खरीद सकता
वह भिखारी है
वह भिखारी है
भूख से व्याकुल
धँसी हुई आँखें
भूखी हैं और प्यास से प्यासी हैं
कितनी उदासी हैं
माँग रहा है
पैसा-दो पैसा
टुकड़ी भर रोटी
तैयार है
बेचने को लहू
अपने तन की बोटी
घूम रहा, बेचारा, लाचार
गाँव-गाँव, शहर-शहर
घर-घर, बाजार-बाजार
और द्वारे-द्वारे
हाथों को पसारे
दूसरे को
अभिनय का शौक है
उसे भिखारी के फटे-चिथे कपड़ों की
जरूरत है
भिखारी को बुलाता है
उसके गंदे कपड़े उतरवाता है
हड्डियों का ढाँचा
नंगा हो जाता है
एवज में दो रुपये में
खरीद लेता है वह
भिखारी के वस्त्रों को
मात्रा दो रुपयों में
लेकिन इन दो रुपयों से
भिखारी कब तक जियेगा
कितना खायेगा-पियेगा
अभिनय के बाद
तत्काल उतारकर
उसके कपड़े फेंक दिये जायेंगे
क्योंकि भिखारी का
भिखमंगा पन
कोई नहीं खरीद सकता
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें