कुछ लोग आज वतन तोड़ रहे हैं अपने ही पैरों की ज़मीं छोड़ रहे हैं कुछ लोग चाहते हैं ऊँचा रहे मस्तक कुछ लोग देश का गाला मरोड़ रहे हैं कुछ लोग लहू बूँद -बूँद रहे जमा कुछ हैं जो लगातार ही निचोड़ रहे हैं कुछ लोग एकता की कोशिशों में लगे हैं कुछ हैं जो मुल्क तोड़ फोड़ रहे हैं आओ ‘नसीर’ मिलकर उनका हाथ पकड़ लें चुपके से जो की भारत की जड़ें गोड़ रहे हैं –मोहम्मद नसरुल्लाह ‘नसीर बनारसी’ मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी की ग़ज़ल मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कुछ लोग आज वतन तोड़ रहे हैं
कुछ लोग आज वतन तोड़ रहे हैं
अपने ही पैरों की ज़मीं छोड़ रहे हैं
कुछ लोग चाहते हैं ऊँचा रहे मस्तक
कुछ लोग देश का गाला मरोड़ रहे हैं
कुछ लोग लहू बूँद -बूँद रहे जमा
कुछ हैं जो लगातार ही निचोड़ रहे हैं
कुछ लोग एकता की कोशिशों में लगे हैं
कुछ हैं जो मुल्क तोड़ फोड़ रहे हैं
आओ ‘नसीर’ मिलकर उनका हाथ पकड़ लें
चुपके से जो की भारत की जड़ें गोड़ रहे हैं
–मोहम्मद नसरुल्लाह ‘नसीर बनारसी’
मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी की ग़ज़ल
मोहम्मद नसरुल्लाह 'नसीर बनारसी' जी की रचनाएँ
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