यह कैसी विडम्बना होगी कि
अंधों की जमात में
शामिल होने के लिए
तुम्हें भी
अपनी आँखों फोड़नी होंगी
अपंगों के साथ
चलने के लिए
तुम्हें भी अपने कंधे
बैसाखियों के सहारे टाँगने होंगे
भले ही यह सब
अभिनय मात्र के लिए करना पड़े
लेकिन जो कुछ भी
तुम्हारे पास है
सब छोड़ना होगा
सूखे गुलाब के पौधों के बीच
रहने के लिए नंगेपन का पतझर
ओढ़ना होगा
दूसरों के कंधो पर
बन्दूक रखकर
चलाने की आदत
तुम्हें भूलनी होगी
लेकिन ऐसा
असम्भव होने की
सम्भावना से
इंकार नहीं
किया जा सकता
यह कैसी विडम्बना होगी कि
यह कैसी विडम्बना होगी कि
अंधों की जमात में
शामिल होने के लिए
तुम्हें भी
अपनी आँखों फोड़नी होंगी
अपंगों के साथ
चलने के लिए
तुम्हें भी अपने कंधे
बैसाखियों के सहारे टाँगने होंगे
भले ही यह सब
अभिनय मात्र के लिए करना पड़े
लेकिन जो कुछ भी
तुम्हारे पास है
सब छोड़ना होगा
सूखे गुलाब के पौधों के बीच
रहने के लिए नंगेपन का पतझर
ओढ़ना होगा
दूसरों के कंधो पर
बन्दूक रखकर
चलाने की आदत
तुम्हें भूलनी होगी
लेकिन ऐसा
असम्भव होने की
सम्भावना से
इंकार नहीं
किया जा सकता
–गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की कविता
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
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