विवाह शादी इश्तिहार हो गये है रिश्ते नाते सब व्यापार हो गये है। वृद्धाश्रम मे रहने की हमे दी सज़ा, हम बच्चो के ही गुनाहगार हो गए है। हर गुलशन में नफरत का माहौल है, सारे फूल अंदर से खार हो गए है। रिटायमेंट के बाद जिंदगी का आलम है, सप्ताह के सारे दिन इतवार हो गए है। सुबह की सैर पर नापते है खूब जमीन, इस तरह से हम बडे जमीदार हो गये है। दर्द दिल का “प्रभु” मेरा जैसे जैसे बढ़ा, लफ्ज़ गज़ल के वज़नदार हो गये है। – पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की गज़ल पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
विवाह शादी इश्तिहार हो गये है
विवाह शादी इश्तिहार हो गये है
रिश्ते नाते सब व्यापार हो गये है।
वृद्धाश्रम मे रहने की हमे दी सज़ा,
हम बच्चो के ही गुनाहगार हो गए है।
हर गुलशन में नफरत का माहौल है,
सारे फूल अंदर से खार हो गए है।
रिटायमेंट के बाद जिंदगी का आलम है,
सप्ताह के सारे दिन इतवार हो गए है।
सुबह की सैर पर नापते है खूब जमीन,
इस तरह से हम बडे जमीदार हो गये है।
दर्द दिल का “प्रभु” मेरा जैसे जैसे बढ़ा,
लफ्ज़ गज़ल के वज़नदार हो गये है।
– पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की गज़ल
पी एल बामनिया जी की रचनाएँ
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