वो जफ़ा थी या वफ़ा भूल गए हैं अब तक । आप क्यूँ जाने उसे याद रखे हैं अब तक । ज़ख़्म जो तूने दिये देख हरे हैं अब तक, अश्क़ आँखों में दबे पाँव चले हैं अब तक । जो बसाए थे हसीं ख़्वाब कभी आँखों में, देख आँखों में वही ख़्वाब बसे हैं अब तक । लो बताएं यूँ हमें लोग भले मिलते हैं, हम भले हैं तो सभी लोग भले हैं अब तक । मयकदे के हैं वही तौर तरीक़े क़ायम, ज़र्फ़ वाले ही यहाँ पाँव रखे हैं अब तक । मयकदे के हैं वही तौर तरीक़े क़ायम, ज़र्फ़ वाले हैं वही आन रखे हैं अब तक । – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
वो जफ़ा थी या वफ़ा
वो जफ़ा थी या वफ़ा भूल गए हैं अब तक ।
आप क्यूँ जाने उसे याद रखे हैं अब तक ।
ज़ख़्म जो तूने दिये देख हरे हैं अब तक,
अश्क़ आँखों में दबे पाँव चले हैं अब तक ।
जो बसाए थे हसीं ख़्वाब कभी आँखों में,
देख आँखों में वही ख़्वाब बसे हैं अब तक ।
लो बताएं यूँ हमें लोग भले मिलते हैं,
हम भले हैं तो सभी लोग भले हैं अब तक ।
मयकदे के हैं वही तौर तरीक़े क़ायम,
ज़र्फ़ वाले ही यहाँ पाँव रखे हैं अब तक ।
मयकदे के हैं वही तौर तरीक़े क़ायम,
ज़र्फ़ वाले हैं वही आन रखे हैं अब तक ।
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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