यूँ तो एक दिन ख़ाक होना है जिस्म ये मिट्टी का राख होना है छोड़ के ये जहां चले गए जो हम फिर लौट के कहाँ वापस आना है – एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
यूँ तो एक दिन ख़ाक होना है
यूँ तो एक दिन ख़ाक होना है
जिस्म ये मिट्टी का राख होना है
छोड़ के ये जहां चले गए जो हम
फिर लौट के कहाँ वापस आना है
– एकता खान
एकता खान जी की कविता
एकता खान जी की रचनाएँ
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