एक जिंदगी मैंने जी हैं उधेड़बुन से सीली कतरनों के रंग से जगमगाती हुई एक प्यास उधार ली हैं चकवे के होठों से चुराकर स्वाति नक्षत्र की बूँद झरने से पहले एक वेगमय भूख जी है उपवास के पेट में दौड़ती हुई ध्वनितमत डकार सें लिपटी हुई कई कोशिशें जी हैं साँप सीढ़ी के पटल पर बारम्बार चढ़ती उतरती एक घना विश्वास जिया हैं रिश्तेदारी की आरी में छिलता तना बनकर एक खौफ मिला हैं दिन की दुपहरी में रात के निशीथ में अपने होने की पहचान लेकर एक गर्मी ली हैं ताजिंदगी कोयला बनती लकड़ियों सें कुहरे से निकलती भाप सें, एक ठंड खरीदी हैं जिंदगी की गिरती दुकान से बदचलन उम्र के बाद एक बेवफा खारापन मिला हैं मुझे कुंआरी झीलों सें मछली के आंसूओं में ढ़ला हुआ एक ऐसी मंजिल मीली हैं अधरझूल झूलों पे लटकती हुई बर्फ के शिखरों पर आग से खेलती हुई। –बिलाल पठान बिलाल पठान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
एक जिंदगी मैंने जी हैं
एक जिंदगी मैंने जी हैं
उधेड़बुन से सीली
कतरनों के रंग से जगमगाती हुई
एक प्यास उधार ली हैं
चकवे के होठों से चुराकर
स्वाति नक्षत्र की बूँद झरने से पहले
एक वेगमय भूख जी है
उपवास के पेट में दौड़ती हुई
ध्वनितमत डकार सें लिपटी हुई
कई कोशिशें जी हैं
साँप सीढ़ी के पटल पर
बारम्बार चढ़ती उतरती
एक घना विश्वास जिया हैं
रिश्तेदारी की आरी में
छिलता तना बनकर
एक खौफ मिला हैं
दिन की दुपहरी में रात के निशीथ में
अपने होने की पहचान लेकर
एक गर्मी ली हैं ताजिंदगी
कोयला बनती लकड़ियों सें
कुहरे से निकलती भाप सें,
एक ठंड खरीदी हैं
जिंदगी की गिरती दुकान से
बदचलन उम्र के बाद
एक बेवफा खारापन मिला हैं मुझे
कुंआरी झीलों सें
मछली के आंसूओं में ढ़ला हुआ
एक ऐसी मंजिल मीली हैं
अधरझूल झूलों पे लटकती हुई
बर्फ के शिखरों पर आग से
खेलती हुई।
–बिलाल पठान
बिलाल पठान जी की रचनाएँ
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