भ्रष्टाचार की काली कहानी हूँ मैं, दर-दर फटती, वो सड़क हूँ मैं। गड्डे, मेरा बदन चीर-चीर देते, ऐसी बदनसीब सड़क हूँ मैं। - हेमलता पालीवाल 'हेमा' हेमलता पालीवाल 'हेमा' जी की कविता हेमलता पालीवाल 'हेमा' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
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भ्रष्टाचार की काली कहानी हूँ मैं
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पावस ऋतु आ गई
लो, पावस ऋतु आ गई श्याम नभ पर छाई वो काली बदरी आ गई पंख फैलाकर मयुर नाचे घन-घन बादल गाजें कोयल की मधुर आवाज आई लो, पावस ऋतु आ गई रिम-झिम...रिम-झिम...बरसे प्रिय मिलन को गौरी तरसे सजन मिलन को वह आई रिते सब ताल-तलैया सारे सुखे पोखर-कुप हमारे ऐसी काली घटा छाई लो, पावस [...] More -
श्याम-वर्ण मेरा
श्याम-वर्ण मेरा, पर मन उजला था, तेरे श्वेत तन मे, बैठा एक मन घोर काला था। रूप-रंग, जोबन और यह माटी की काया, अज्ञानी, दूराचारी, पापी मन यह कब समझ पाया। नारी का सौन्दर्य, उसका आचरण-व्यहार है, मृदुल व स्नेह की डोर से बाँधती घर-संसार है। काम-वासना से दुषित, नर देह से रखता नाता है, [...] More