• सनम पर गीत, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    गीत – कोरे कागज पै

    गीत - कोरे कागज पै कोरे कागज पै लिखूँ सनम तेरा नाम मेरी यादो में रहता है तु, सुबह और शाम कोरे कागज पै...... दिल की गलियों मे तु, जब गुजरता है संग तेरे यादो का कारवाँ, भी गुजरता है जहाँ तु रहे, वहाँ ही मोहब्बत का हो धाम कोरे कागज पै........... हौले-हौले से, जब [...] More
  • ज़माने पर कविता, पी एल बामनिया

    साए को तरसता

    साए को तरसता शज़र देखा, कतरे को मचलता समंदर देखा। गुज़रे जमाने का ज़खीरा मिला, झाँक कर जब खुद के अंदर देखा। ज़माने मे हमने उल्टा मंजर देखा, मदारी को नचाता बंदर देखा। लबों पर झरते थे फूल जिसके, उसके दिल मे छुपा खंजर देखा। जिनके घर दौलत की फसल उगी, उनका दिल बडा ही [...] More
  • मेघा पर कविता, हेमलता पालीवाल "हेमा"

    मेघा रे मेघा

    मेघा रे मेघा, तु जम के बरस जा रे प्यासी धरती को भीगो के जा रे। रीते है सभी देख ताल-तलैया रे सुखे पडे सभी खेत-बगियाँ रे। तु सबकी प्यास अब बूझा जा रे मेघा....... सबके मन में आस जग गई रे बदली नभ में ठहर गई रे। उमड़ घूमड कर तु बरस जा रे [...] More
  • पहले से जल रही है

    पहले से जल रही है यह धरा ईष्या, द्वेष की अग्नि से धरा तु नभ से और अँगारे न बरसा हर शख्स हो रहा है मरा-मरा। लोभ, लालच की लपेटो ने यहाँ इँसानियत खाक कर रख दी यहाँ उठ रहा है हर तरफ धुआँ -धुआँ हर शख्स यहाँ है अब डरा-डरा। धू-धू -धू-धू, जल रही [...] More
  • दर्पण पर कविता, अवधेश कुमार 'अवध'

    दर्पण की व्यथा

    जो जैसा मेरे दर आता। ठीक हूबहू खुद को पाता।। फिर मुझपर आरोप लगाता। पक्षपात कह गाल बजाता।। मैं हँसता वह जल भुन जाता। ज्यों दाई से गर्भ छुपाता।। अदल बदल मुखड़े लगवाता। रंग रसायन नित पुतवाता।। शिशु सा नंगा रूप दिखाता। इठलाता एवं शर्माता।। झूठ बोलने को उकसाता। सच्चाई से नज़र चुराता।। लोभ मोह [...] More
  • जीवन सफल बनाएगा

    नारी का मुश्किल जीवन नर का सामर्थ्य बढ़ाएगा, सहनशक्ति की सबल मूर्ति से कौन भला टकराएगा। कभी सफलता को पाकर मदहोश नहीं होना यारों, लाख ढँके बादल फिर भी सूरज दिन लेकर आएगा। आज नहीं तो कल मुझको मेरी मंजिल मिल जाएगी, किन्तु राह में बहुतों चेहरों से नकाब उठ जाएगा। आपस के तू तू [...] More
  • इतिहास पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    कहने को तो सब अपने हैं

    कहने को तो सब अपने हैं अपनो जैसा प्यार मिला है | अपनेपन से भरा हुआ हो ऐसा नहीं विचार मिला है | जीवन की इस दोपहरी में घटा अमावस की छायी है | गलियारे में चाँद खड़ा है सहमी सहमी परछाई है | अंधेरे में कैद रोशनी आसू भरी कथा कहती है | एक [...] More
  • प्र्शन पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    जीवन के चौराहे पर

    जीवन के चौराहे पर, सब ओर देखिये प्रश्न मिलेगा शान्त सरोवर की छाती पर प्रश्न कमल बनकर निकलेगा एकाकी जीवन के पल में, प्रश्न सँवर कर ही आता है || सपनों का संसार अनूठा | लेकिन प्रश्न उभर आता है || नैनों में कुछ प्रश्न चिन्ह है, अधरों पर कुछ प्रश्न चिन्ह हैं | सागर [...] More
  • मुझे मेरे हिस्से का

    मुझे मेरे हिस्से का आकाश दे दो, अनछुयी सासों की वंजर धरती में, बो दूंगा एक टुकड़ा चांद | गल जायेगा आने वाली पीढ़ी का उन्माद आखों में खिलने वाले गंध हीन फूल साँसों की देहरी छूकर लौट आये | ना जाने कितने क्वारे गीत, बासन्ती स्वर में खो गये | अनदेखे मन के मीत, [...] More
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