पहले से जल रही है यह धरा ईष्या, द्वेष की अग्नि से धरा तु नभ से और अँगारे न बरसा हर शख्स हो रहा है मरा-मरा। लोभ, लालच की लपेटो ने यहाँ इँसानियत खाक कर रख दी यहाँ उठ रहा है हर तरफ धुआँ -धुआँ हर शख्स यहाँ है अब डरा-डरा। धू-धू -धू-धू, जल रही है वसुधा सुख रहा है वो नन्हा सा पौधा हरियाली का मिटा नामो निशान रित गया सरोवर, जो था भरा। – हेमा उदयपुरी हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
पहले से जल रही है
पहले से जल रही है यह धरा
ईष्या, द्वेष की अग्नि से धरा
तु नभ से और अँगारे न बरसा
हर शख्स हो रहा है मरा-मरा।
लोभ, लालच की लपेटो ने यहाँ
इँसानियत खाक कर रख दी यहाँ
उठ रहा है हर तरफ धुआँ -धुआँ
हर शख्स यहाँ है अब डरा-डरा।
धू-धू -धू-धू, जल रही है वसुधा
सुख रहा है वो नन्हा सा पौधा
हरियाली का मिटा नामो निशान
रित गया सरोवर, जो था भरा।
– हेमा उदयपुरी
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की कविता
हेमलता पालीवाल "हेमा" जी की रचनाएँ
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