खानाबदोश है कई इस जग में उजरी धरती पे,गदले नभ नीचे, वे ही बचा रहे एक सभ्यता अपने करारे कर्म [...]
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खानाबदोश है कई इस जग में
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एक जिंदगी मैंने जी हैं
एक जिंदगी मैंने जी हैं उधेड़बुन से सीली कतरनों के रंग से जगमगाती हुई एक प्यास उधार ली हैं चकवे [...] More -
गुमशुदा शहर का वाशिंदा
पिछली साल शहर की सड़को ने वादा किया मुझ से गाँव ले जाने का मगर सड़क खुद ब खुद ही [...] More -
आदमी कहाँ लड़ता है, आजकल से
आदमी कहाँ लड़ता है, आजकल से, लड़ती हैं उसकी मजबूरियाँ बैचेन होकर छैनी-हथौड़ी लेकर हथेली की रेखाओं की बुनावट सें, [...] More