Tag Archives: दीपा पन्त ‘शीतल’

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  • रूठने मनाने पर कविता, दीपा पंत 'शीतल'

    तुम नहीं पुकारोगे

    तुम नहीं पुकारोगे, तो क्या खो जाऊँगी मैं ? तुम नहीं मनाओगे, तो क्या रूठी ही रह जाऊँगी मैं ? तुम नहीं समेटोगे, तो क्या बिखर जाऊँगी मैं ? तुम नहीं थामोगे, तो क्या टूट जाऊँगी मैं ? नहीं! आँखे होंगी भरी, पर तब भी मुस्कुराऊँगी मैं, दिल होगा भारी, पर तब भी गुनगुनाऊँगी मैं। [...] More
  • ढलती उम्र पर कविता, दीपा पंत ‘शीतल’

    एक उम्र तय करनी होगी

    एक उम्र तय करनी होगी मेरे जैसे हो जाने को... सुलगी सिसकी सांसों को घूंट घूंट पी जाने को। शीतल होना शीतल दिखना अलग अलग दो बातें हैं, ख़ुद को खोकर कहीं भूलकर फिर से ढो कर लाने को। एक उम्र तय करनी...... ये नाराज़ी, राजी होना छोड़ चुकी वो किस्से हैं, बंजर होके हरा [...] More
  • हाँ अहसास है मुझे कि आसपास हो तुम

    हाँ अहसास है मुझे कि आसपास हो तुम

    हाँ अहसास है मुझे कि आसपास हो तुम, हाँ, इकरार है मुझे कि कुछ खास हो तुम। ज़िन्दगी की भागमभाग में, एक सुकून भरा विश्राम हो तुम। थक कर चूर हुई निढाल सी दोपहर में, ठंडी झोपड़ी सा आराम हो तुम। हा यक़ीन है मुझे मेरी चाहत हो तुम, हाँ, भरोसा है मुझे मेरी राहत [...] More
  • तेरी कहानी कविता

    बनना चाहती हूँ

    तेरी कहानी का बस एक, किरदार बनना चाहती हूँ, तुझे बेइंतहा चाह कर, फिर गुनहगार बनना चाहती हूँ। मालूम है, तुझे गवांरा नहीं , मेरा साथ ज़रा दूर तलक भी, तेरे दामन का नहीं, तेरे साये का हक़दार बनना चाहती हूँ। माना कि मुझे भुला देगा तू, बस एक किस्सा समझ कर, पर फिर भी, [...] More
  • रामा चला गया कविता

    रामा चला गया

    रामा चला गया.. अपने परिवार की याद में घुटकर, चेन्नई से यहाँ के संक्रमण में , उसका पशु मन नहीं कर पाया सामंजस्य, वो मूक समझ न पाया, बदले भौतिक परिवेश में, नए देखभाल कर्मियों के नए संकेत। चिड़ियाघर अब जैविक उद्यान हो गए हैं, जहाँ तर्कयुक्त बंधी हुईं आजादी है, खुले आसमां के जिल्द [...] More
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