एक उम्र तय करनी होगी मेरे जैसे हो जाने को… सुलगी सिसकी सांसों को घूंट घूंट पी जाने को। शीतल होना शीतल दिखना अलग अलग दो बातें हैं, ख़ुद को खोकर कहीं भूलकर फिर से ढो कर लाने को। एक उम्र तय करनी…… ये नाराज़ी, राजी होना छोड़ चुकी वो किस्से हैं, बंजर होके हरा सा दिखना दो जीवन जी जाने को। एक उम्र तय करनी……. थोड़ा थोड़ा मुझे तोड़ कर वो मिट्टी सा रौंद गया, नयन नीर से गीला करके सोंधा सा महकाने को। एक उम्र तय करनी…… हवा भी आके ज़रा सा छूकर तन्हा सा कर जाती अब, भीतर कुछ गीलापन रखकर बाहर फिर मुस्काने को। एक उम्र तय करनी….. – दीपा पंत ‘शीतल’ दीपा पंत ‘शीतल’ जी की कविताएं [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
एक उम्र तय करनी होगी
एक उम्र तय करनी होगी
मेरे जैसे हो जाने को…
सुलगी सिसकी सांसों को
घूंट घूंट पी जाने को।
शीतल होना शीतल दिखना
अलग अलग दो बातें हैं,
ख़ुद को खोकर कहीं भूलकर
फिर से ढो कर लाने को।
एक उम्र तय करनी……
ये नाराज़ी, राजी होना
छोड़ चुकी वो किस्से हैं,
बंजर होके हरा सा दिखना
दो जीवन जी जाने को।
एक उम्र तय करनी…….
थोड़ा थोड़ा मुझे तोड़ कर
वो मिट्टी सा रौंद गया,
नयन नीर से गीला करके
सोंधा सा महकाने को।
एक उम्र तय करनी……
हवा भी आके ज़रा सा छूकर
तन्हा सा कर जाती अब,
भीतर कुछ गीलापन रखकर
बाहर फिर मुस्काने को।
एक उम्र तय करनी…..
– दीपा पंत ‘शीतल’
दीपा पंत ‘शीतल’ जी की कविताएं
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