Tag Archives: शम्भू नाथ पान्डे ‘शम्भू’

  • धधकी कैसी आग वतन में

    धधकी कैसी आग वतन में

    धधकी कैसी आग वतन में मानवता का ज्वाला उठा राजनीति की देख कुटिलता जनमानस चीत्कार उठा मानव मन भर गयी कलुषता सदभाव यहाँ से लुप्त हुआ स्वार्थ से प्रेरित जन सब दिखते परमभि भाव जा सुस्त हुआ सहयोग की जगह असहयोग हुआ समभाव की जगह दुर्भाव है लिप्सा धन की बढ़ गयी इतनी पर प्यार [...] More
  • मातृभूमि कविता

    मातृभूमि के माला के मन के हैं हम

    मातृभूमि के माला के मन के हैं हम स्नेह धागे में सब हैं पिरोए हुए जन्भूमि के उत्कर्ष हमें चाहिए स्वप्न बिंघ कर भी हम हैं सजोये हुए स्नेह धागा अगर जो विखंडित हुआ न जाने ये मनके किधर जायेंगे न धर्म ही रहे औ न जाति ही रहे शुष्क तिनके से सरे बिखर जायेंगे [...] More
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