धधकी कैसी आग वतन में मानवता का ज्वाला उठा राजनीति की देख कुटिलता जनमानस चीत्कार उठा मानव मन भर गयी कलुषता सदभाव यहाँ से लुप्त हुआ स्वार्थ से प्रेरित जन सब दिखते परमभि भाव जा सुस्त हुआ सहयोग की जगह असहयोग हुआ समभाव की जगह दुर्भाव है लिप्सा धन की बढ़ गयी इतनी पर प्यार का हुआ आभाव है जागृती एक बहाना हो गयी समाज विखंडित करने का सोच नहीं अब रही तनिक भी लोगों को एकत्रित करने का मानव मन बैठी दानवता नारियां जलाई जातीं हैं दुष्कर्म के साधन बनाते इनको ना लज़्ज़ा तनिक भी आती है भारत वासी नींद से जागो समय की अब तो पुकार सुनो चैतन्य नहीं जो हुई चेतना क्या होगा कुछ मन में गुनो – शम्भु शम्भू नाथ पान्डे 'शम्भू' जी की कविता [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
धधकी कैसी आग वतन में
धधकी कैसी आग वतन में
मानवता का ज्वाला उठा
राजनीति की देख कुटिलता
जनमानस चीत्कार उठा
मानव मन भर गयी कलुषता
सदभाव यहाँ से लुप्त हुआ
स्वार्थ से प्रेरित जन सब दिखते
परमभि भाव जा सुस्त हुआ
सहयोग की जगह असहयोग हुआ
समभाव की जगह दुर्भाव है
लिप्सा धन की बढ़ गयी इतनी
पर प्यार का हुआ आभाव है
जागृती एक बहाना हो गयी
समाज विखंडित करने का
सोच नहीं अब रही तनिक भी
लोगों को एकत्रित करने का
मानव मन बैठी दानवता
नारियां जलाई जातीं हैं
दुष्कर्म के साधन बनाते इनको
ना लज़्ज़ा तनिक भी आती है
भारत वासी नींद से जागो
समय की अब तो पुकार सुनो
चैतन्य नहीं जो हुई चेतना
क्या होगा कुछ मन में गुनो
– शम्भु
शम्भू नाथ पान्डे 'शम्भू' जी की कविता
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