Tag Archives: देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दद्दा’

  • इतिहास पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    कहने को तो सब अपने हैं

    कहने को तो सब अपने हैं अपनो जैसा प्यार मिला है | अपनेपन से भरा हुआ हो ऐसा नहीं विचार मिला है | जीवन की इस दोपहरी में घटा अमावस की छायी है | गलियारे में चाँद खड़ा है सहमी सहमी परछाई है | अंधेरे में कैद रोशनी आसू भरी कथा कहती है | एक [...] More
  • प्र्शन पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    जीवन के चौराहे पर

    जीवन के चौराहे पर, सब ओर देखिये प्रश्न मिलेगा शान्त सरोवर की छाती पर प्रश्न कमल बनकर निकलेगा एकाकी जीवन के पल में, प्रश्न सँवर कर ही आता है || सपनों का संसार अनूठा | लेकिन प्रश्न उभर आता है || नैनों में कुछ प्रश्न चिन्ह है, अधरों पर कुछ प्रश्न चिन्ह हैं | सागर [...] More
  • मुझे मेरे हिस्से का

    मुझे मेरे हिस्से का आकाश दे दो, अनछुयी सासों की वंजर धरती में, बो दूंगा एक टुकड़ा चांद | गल जायेगा आने वाली पीढ़ी का उन्माद आखों में खिलने वाले गंध हीन फूल साँसों की देहरी छूकर लौट आये | ना जाने कितने क्वारे गीत, बासन्ती स्वर में खो गये | अनदेखे मन के मीत, [...] More
  • दिल के राज पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    हम अपने दिल का राज

    हम अपने दिल का राज बताये किसे किसे दामन में लगा दाग दिखाये किसे किसे लहरों से खेलता रहा दरिया का दर्दे दिल टूटी है कश्ती और बिठाये किसे किसे खामोश किनारों से न पूछो लगी दिल की आगोश भर न पाये बताये किसे किसे जज्वात की तौहीन पर हंसता है जमाना दर्दे जिगर दिखा [...] More
  • अँधेरे पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    रह न पाये अब अंधेरा

    रह न पाये अब अंधेरा | तोड़ दो तटबन्ध सारे प्रखर हो जाये सवेरा || व्योम की परछाइयाँ जब बादलों में उतर आये क्षितिज की काली घटा जब एक पल में विखर जाये खिड़कियों से झांककर विश्वास का उतरे चितेरा || उभरता पदचिन्ह नभ में खण्डहर सा ठह गया हो ओस पर जैसे किसी ने [...] More
  • दीवाने लोगो पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    कितने अनजाने हैं लोग

    कितने अनजाने हैं लोग | कितने दीवाने हैं लोग || तोड़ सभी सीमा के बन्धन करते हैं सहास अभिनन्दन भीतर कुछ है बाहर कुछ है छल छदमों के ऊपर बन्दन चेहरे सबके पास कई हैं हर छण बदल बदल जाता है घड़ियाली आसू की खेती मन का भाव पिघल जाता है कितने अनजाने हैं लोग [...] More
  • अँधेरे पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    कहीं से रोशनी लाओ

    कहीं से रोशनी लाओ बहुत अंधेरा है यहाँ हर काफिले संग जुगनुओं का डेरा है भाषण की रोटी खाने से पेट किसी का नहीं भरा है आश्वासन की फटी लगोटी देह किसी का नहीं ढका है शतरंजी मोहरे बिछाकर बैठे हैं रहनुमा हमारे जैसे बगुला दम साधे हो ध्यान लगाये नदी किनारे विछाये जाल अन्देखे [...] More
  • मौसम पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    आओ कुछ मनसायन

    आओ कुछ मनसायन कर लो मन का ताप पिघल जायेगा चौराहे पर खड़े बटोही का अभिशाप बदल जायेगा कितनी सदियों से घबराये मौसम की दीवार ढह गयी झंझावातों की फिसलन से माझी की पतवार बह गयी एकाकी घातों प्रतिघातों से जीवन संकल्प टूटता आशाओं का दीप बुझाता साथी का भी साथ छूटता मत घबराओ दुनिया [...] More
  • लक्ष्य पर कविता, देवेन्द्र कुमार सिंह "दददा"

    इस तरह कब चलेगा

    इस तरह कब चलेगा दर्द सारे चुक गये पतवार बनकर अश्रु सारे झर गये नीहार बनकर यह अकेली साँस कब तक चल सकेगी भाव सारे खो गये मनुहार बनकर पंथ जाने कब रुकेगा इस तरह कब तक चलेगा दूर जीवन लक्ष्य कुछ बीमार लगता स्नेह का बन्धन बहुत लाचार लगता पिघल जाये मोम सा सावन [...] More
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