मुझे मेरे हिस्से का आकाश दे दो,
अनछुयी सासों की वंजर धरती में,
बो दूंगा एक टुकड़ा चांद |
गल जायेगा आने वाली पीढ़ी का उन्माद
आखों में खिलने वाले गंध हीन फूल
साँसों की देहरी छूकर लौट आये |
ना जाने कितने क्वारे गीत,
बासन्ती स्वर में खो गये |
अनदेखे मन के मीत,
चेहरे की झुर्रियां,
माथे की सिलवटें
अब रंग भरने लगी हैं
अपनी कहानी कहने लगे हैं |
रोशन दान में बैठी गोरैया,
कुछ सहमी कुछ डरी |
पंखो से बच्चों को ढ़ापे
अनजाने तूफान से जूझने को तत्पर
देख रही है निरंतर,
दीवार पर रेंगती छिपकली को,
जो काँप रही है,
हाँफ रही है |
शायद दोनों का मन एक है |
दोनों का चिन्तन एक है |
मुझे मेरे हिस्से का
मुझे मेरे हिस्से का आकाश दे दो,
अनछुयी सासों की वंजर धरती में,
बो दूंगा एक टुकड़ा चांद |
गल जायेगा आने वाली पीढ़ी का उन्माद
आखों में खिलने वाले गंध हीन फूल
साँसों की देहरी छूकर लौट आये |
ना जाने कितने क्वारे गीत,
बासन्ती स्वर में खो गये |
अनदेखे मन के मीत,
चेहरे की झुर्रियां,
माथे की सिलवटें
अब रंग भरने लगी हैं
अपनी कहानी कहने लगे हैं |
रोशन दान में बैठी गोरैया,
कुछ सहमी कुछ डरी |
पंखो से बच्चों को ढ़ापे
अनजाने तूफान से जूझने को तत्पर
देख रही है निरंतर,
दीवार पर रेंगती छिपकली को,
जो काँप रही है,
हाँफ रही है |
शायद दोनों का मन एक है |
दोनों का चिन्तन एक है |
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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