Tag Archives: रामनारायण सोनी

  • बैसाखियों पर कविता, रामनारायण सोनी

    बैसाखियों पर जिन्दगी

    शूल बन कर फूल भी चुभते रहे अर्थ बिन जो शब्द थे मथते रहे रश्मियाँ बन उर्मियाँ ढलती रही वे कनक घट विष भरे झरते रहे।। इन कुहासों में घिरी अतिरंजनाएँ है सिमटता मुट्ठियों में आसमां भी हम बिखरते स्वप्न के अंबार में चाहतों की ही किरच चुनते रहे।। जिन्दगी बैसाखियों पर चल रही चू [...] More
  • भगोरिया उत्सव पर कविता, रामनारायण सोनी

    भागोरिया एक समवेत स्वयंवर

    टेसू क्या दहका है, मन क्यूँ यह बहका है वसुधा का कण कण ऐसा क्यूँ दरका है। गौरी के गाँव मुआ महुआ भी महका है गंध फाग खेल रहे कनक जुही चम्पा है।। महुए की मण्डी से ताड़ी की हण्डी से पी पी जन डोल रहे हाट बाट मस्ती से। मचल उठी मस्त मगन छैल [...] More
  • स्वप्न की निशिगन्ध

    हमारे स्वप्न भी उच्छृंखल हो गए हैं कभी ये नींद उड़ा देते हैं, कभी जागते में कहीं ले जाते हैं बैठ कर हवा के रेशमी परों पर देखता हूँ माटी का गेरूआ रंग बौराए आम की घनी छाँव मे ठहर जाता है वक्त किसी पलक भूल जाती है अपना झपकना उन्मुक्त स्वाँसों की महक उठती [...] More
  • बुढ़ापे पर कविता, रामनारायण सोनी

    टोकनियों में भर भर

    टोकनियों में भर भर उम्र भर ढोये कनस्तर जिन्दगी हुई ऐसी बसर इस शहर से उस शहर चलता रहा शामो सेहर यायावरी अभी अभी ठहरी पीठ पर लदे अहसास अहसासों में रंजे रोमाञ्च गाँठ से बंधे मजबूत रिश्ते कर्म के तानों बानों पर बुनी चादर, बैठी जीत हार जिन्दगी की छोटी सी बही यह यायावरी [...] More
  • शब्दों पर कविता, रामनारायण सोनी

    कागज कलम प्रतीक्षा में खड़े थे

    कागज कलम प्रतीक्षा में खड़े थे कि लिखूँ तुम्हें कविता में और तभी सांकल खटकी भावों का महा-शब्दकोष बन मुस्कान लिये खड़ी थी तुम कोरा कागज वह अब मेरा महाकाव्य है बखान करता है सप्त सर्ग प्रीत के अनुराग के -रामनारायण सोनी रामनारायण सोनी जी की कविता रामनारायण सोनी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको [...] More
  • जीवन पर आधारित कविता, रामनारायण सोनी

    जीवन की सरिता

    जीवन की सरिता सरिता के तटबन्ध तटबन्धों पर सटे सुहाने घाट ये घाट साक्षी है - जीवन प्रवाह के साक्षी है धार के, गुजरते पानी के, चढ़ते उफान के, झरते प्रपात के, और जल की शीतलता के, निर्मलता के, सरलता के झरोखे इतिहास के *ठहरो* सोचो! क्या है यह सब तट हैं जन्म अौर मृत्यु [...] More
  • बड़ी हैरत में हूँ

    रूह हो तुम!

    बड़ी हैरत में हूँ खाली कैनवास पर तो मन रेखाएँ खींच लेता है कूँचियाँ क्यों सहम जाती है उतर नही पाते कैनवास पर क्योंकि तुम रंग नहीं रूह ही हो तुम तो मन के भीतर ही अमिट छबि में महफूज हो बने रहो सदा-सदा - रामनारायण सोनी नोट: यह छ्न्द रामनारायण सोनी जी द्वारा ईजाद [...] More
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