शूल बन कर फूल भी चुभते रहे अर्थ बिन जो शब्द थे मथते रहे रश्मियाँ बन उर्मियाँ ढलती रही वे [...]
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बैसाखियों पर जिन्दगी
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भागोरिया एक समवेत स्वयंवर
टेसू क्या दहका है, मन क्यूँ यह बहका है वसुधा का कण कण ऐसा क्यूँ दरका है। गौरी के गाँव [...] More -
स्वप्न की निशिगन्ध
हमारे स्वप्न भी उच्छृंखल हो गए हैं कभी ये नींद उड़ा देते हैं, कभी जागते में कहीं ले जाते हैं [...] More -
टोकनियों में भर भर
टोकनियों में भर भर उम्र भर ढोये कनस्तर जिन्दगी हुई ऐसी बसर इस शहर से उस शहर चलता रहा शामो [...] More -
कागज कलम प्रतीक्षा में खड़े थे
कागज कलम प्रतीक्षा में खड़े थे कि लिखूँ तुम्हें कविता में और तभी सांकल खटकी भावों का महा-शब्दकोष बन मुस्कान [...] More -
जीवन की सरिता
जीवन की सरिता सरिता के तटबन्ध तटबन्धों पर सटे सुहाने घाट ये घाट साक्षी है - जीवन प्रवाह के साक्षी [...] More -
रूह हो तुम!
बड़ी हैरत में हूँ खाली कैनवास पर तो मन रेखाएँ खींच लेता है कूँचियाँ क्यों सहम जाती है उतर नही [...] More