Tag Archives: प्रभु लाल बामनिया

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  • खता पर ग़ज़ल, पी एल बामनिया

    गुजरे जो पल

    गुजरे जो पल उन्हें सदा देते। प्यार के शोलो को हवा देते। क्या खता हो गई बताते गर, खुद को भी कोई हम सजा देते। नेकिया कर अगर बता देते लोग तब नुक्स भी गिना देते। लफ़्ज़ होठों पे जब नही आए, अश्क आँखो से तुम बहा देते। मुस्कुराने की जब वजह पुछी जख्म दिल [...] More
  • उदासी पर ग़ज़ल, पी एल बामनिया

    आज दामन उदासी से

    आज दामन उदासी से भर गया, इक गम काम अपना कर गया। अपने बिस्तर पर सोते सोते ही, मैं, सपने में जाने किधर गया। दुख की घडियां क्या आई, वक्त न जाने क्यूँ ठहर गया। बाप ने बेटी को जब विदा किया, इक समंदर आंखो मे उतर गया। कोहिनूर की इच्छा शक्ति देखो, कोयले की [...] More
  • कलियुग पर ग़ज़ल, पी एल बामनिया

    जंगल मे ये क्या

    जंगल मे ये क्या गदर हो रहा है, आज हर इक शज़र रो रहाँ है। गाँव मे हम बूँद बूँद के लिये तरसे, और शहर मे तू कार धो रहा है। मेरे शहर मे रोज तांडव हो रहा है, अमीरे शहर ऐ सी में सो रहा है। आदमी ही आदमी नज़र आ रहे है, आजकल [...] More
  • हल पूछने पर ग़ज़ा, पी एल बामनिया

    इस तरह से

    इस तरह से हाल पूछा, मौन रह कर सवाल पूछा। चिंता कोई नही है जब, फिर कैसे उडे बाल पूछा। शिकारी ने परिंदे से कैसा लगा जाल पूछा। प्यादे ने वज़ीर को मात दे कर कैसी है ये चाल पूछा। मिला जब विकास हमसे, कहाँ है आटा दाल पूछा। नीरव मोदी, विजय माल्या से कहाँ [...] More
  • थक गया हूँ मै

    थक गया हूँ मै आराम चाहिए, महफ़िल से सजी शाम चाहिए। जिंदगी ने खुशियो से ख़ूब नवाज़ा, सहेजने को अब गोदाम चाहिए। नाम तो अब तक बहुत मिला है, अब थोडा सा वक्त गुमनाम चाहिए। लोग बाहर से कुछ अंदर से कुछ, सबको डुप्लीकेट हमनाम चाहिए। ज़रूरतमंदों की मदद कर सकूँ मैं, मुझको इक ऐसा [...] More
  • ज़िंदगी की रह पर ग़ज़ल, पी एल बामनिया

    पहले तो कुछ दाने बांटे

    पहले तो कुछ दाने बांटे, फिर परिंदो के पर कांटे। हे रब, अमीरो और गरीबो को कर दो अब तुम आटे साटे। शादी के वक्त है गाजे बाजे, गृहस्थी मे फिर होते है सन्नाटे। नींद मुझको आती नहीं अब, सुन कर बीबी के खर्राटे। बाते करते वो ऊँची ऊँची, कद मे जो है छोटे नाटे। [...] More
  • विवाह शादी इश्तिहार हो गये है

    विवाह शादी इश्तिहार हो गये है रिश्ते नाते सब व्यापार हो गये है। वृद्धाश्रम मे रहने की हमे दी सज़ा, हम बच्चो के ही गुनाहगार हो गए है। हर गुलशन में नफरत का माहौल है, सारे फूल अंदर से खार हो गए है। रिटायमेंट के बाद जिंदगी का आलम है, सप्ताह के सारे दिन इतवार [...] More
  • ज़माने पर कविता, पी एल बामनिया

    साए को तरसता

    साए को तरसता शज़र देखा, कतरे को मचलता समंदर देखा। गुज़रे जमाने का ज़खीरा मिला, झाँक कर जब खुद के अंदर देखा। ज़माने मे हमने उल्टा मंजर देखा, मदारी को नचाता बंदर देखा। लबों पर झरते थे फूल जिसके, उसके दिल मे छुपा खंजर देखा। जिनके घर दौलत की फसल उगी, उनका दिल बडा ही [...] More
  • मौसम के बदलने पर ग़ज़ल, पी एल बामनिया

    अब ये मौसम कातिलाना

    अब ये मौसम कातिलाना हो चुका है दुश्मन का अब शहर आना हो चुका है। तुम खुद को अब मत ढूंढना इस शहर में तेरा इस दिल में ठिकाना हो चुका है। अंधेरों का राज होगा इस धरा पर तारों का तो झिलमिलाना हो चुका है। महफिल मे अब तुम गुनगुनाओ जरा सा इस गम [...] More
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